एक साथ चुनाव कराने से सुरक्षा बलों, चुनावी कर्मचारियों और चुनाव सामग्री जैसे संसाधनों पर खर्च में भारी कमी हो सकती है।
1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव में ₹10.5 करोड़ खर्च हुए थे, जबकि 2019 के चुनाव में यह आंकड़ा ₹50,000 करोड़ तक पहुंच गया।
एकसमान प्रक्रिया अपनाने से भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के परिचालन खर्च को भी कम किया जा सकता है।
2. शासन में निरंतरता
बार-बार चुनावों के कारण सरकारें अक्सर अल्पकालिक चुनावी लाभ पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे “नीतिगत ठहराव” (policy paralysis) हो जाता है। ONOE इस समस्या को हल कर सकता है और सरकारों को बिना रुकावट दीर्घकालिक नीतियां लागू करने में मदद कर सकता है।
कम संसाधनों का दबाव, चुनावी अभियान और भ्रष्टाचार में कमी से बेहतर शासन के परिणाम सामने आ सकते हैं।
3. व्यवधानों में कमी
बार-बार चुनाव होने से सार्वजनिक जीवन में बार-बार बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जैसे कि शैक्षणिक संस्थानों का चुनाव केंद्र के रूप में उपयोग।
चुनावी ड्यूटी में लगे शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों के प्राथमिक कार्यों में कम व्यवधान होगा, जिससे प्रशासनिक दक्षता में सुधार होगा।
4. मतदाता भागीदारी में वृद्धि
समर्थकों का तर्क है कि बार-बार चुनावों से होने वाली “चुनावी थकावट” (election fatigue) को कम करके एक साथ चुनाव से अधिक मतदान और मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है।
5. सुगम चुनाव प्रचार
राजनीतिक दलों को केंद्रित चुनावी प्रचार का लाभ मिलेगा, जिससे छोटे दलों को प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करने का बेहतर अवसर मिलेगा।
6. आर्थिक लाभ
कोविंद समिति की रिपोर्ट के अनुसार, एक साथ चुनाव होने से चुनावी वर्ष में भारत की राष्ट्रीय GDP वृद्धि दर 1.5% अधिक हो सकती है।
कम चुनाव होने से काले धन की खपत और व्यवसायों पर राजनीतिक चंदे के दबाव में कमी आ सकती है। 18वें लोकसभा चुनावों के दौरान ECI ने ₹10,000 करोड़ की नकदी जब्त की थी।
7. बेहतर चुनाव निगरानी
एक साथ चुनाव होने से चुनावी निगरानी और पारदर्शिता में सुधार हो सकता है, जिससे निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित किए जा सकते हैं।